Tuesday 14 February 2023

वन्य जीव संरक्षण और हमारी शिक्षा पद्धती !

 











 
 





























वन्य जीव संरक्षण और हमारी  पद्धती ! 


"एक गैंडे को दुनिया में किसी और से ज्यादा अपने सींग की जरूरत होती है" ... पॉल ओक्सटन

"आप दुनिया को बदलने के लिए शिक्षा को सबसे शक्तिशाली हथियार के रुप में उपयोग कर सकते हैं।" … नेल्सन मंडेला

लेख की शुरुआत दो उद्धरणों से कि है और दोनों के बीच समानता यह है कि वे दोनों एक ऐसे उपमहाद्वीप से हैं जो वन्य जीवन से बहुत अधिक समृद्ध है। जी हांये दोनों उद्धरण अफ्रीका महाद्वीप के हैं। पॉल एक यूरोपीय है लेकिन उन्होंने अपने जीवन के उद्देश्य को अफ्रीका के जंगलों में पाया है। मंडेला का जन्म अफ्रीका में हुआ था और वे वहीं पले-बढ़े थे। एक और समानता यह है कि जहां मंडेला ने अपना पूरा जीवन मानव अधिकारों के लिए लड़ने के लिए समर्पित कर दियावहीं पॉल गैर-मानव प्रजातियों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और विडंबना यह है कि दोनों ही युद्ध एक ही जमीन पर लड़े जा रहे हैं।

इस लेख को लिखने और वन्यजीवन के लिए ऐसे शब्दों का उपयोग करने का मुख्य कारण (एक बार फिरकुछ पुणेरी पाठक चिंता में पड सकते हैं) वन्यजीव संरक्षण हैलेकिन एक वन्यजीव एनजीओ या एक वन अधिकारी या शोधकर्ता के नजरिए से नहींबल्कि एक स्कूल शिक्षक के नजरिए से। इसका कारण यह था कि जंगल बेल्स ने तीन प्रतिष्ठित स्कूलों के शिक्षकों के लिए एक वेबिनार का आयोजन किया। वेबिनार में भाग लेने वाले शिक्षको को इस विषय को चुनने से भी थोड़ी शंका थी कि वे वन्यजीव संरक्षण के विषय पर क्या बोलेंगे या बताएंगेक्योंकि उन्हें लगा कि यह उपरोक्त सूची में शामिल व्यक्तियों जैसे (वन अधिकारीगैर सरकारी संगठनशोधकर्ता आदि) का काम नहीं हैइसी प्रकार वेबिनार के प्रारंभ में जब मेरी मित्र हेमांगी ने अपने विषय का थोड़ा सा परिचय दिया तो इन शिक्षकों के मन में एक छिपा हुआ प्रश्न था कि कुछ शहरी स्कूल शिक्षक वन्यजीव संरक्षण के बारे में क्या कहेंगे ! लेकिन आज समाज के हर तबके का सहयोग वन्य जीवों की जरूरत है और इसके लिए स्कूल-कॉलेजों से बेहतर मंच क्या हो सकता है। क्योंकि क्योंकि यहीं से हमारे समाज की भावी पीढ़ी का निर्माण हो रहा है और आने वाली पीढ़ी संस्कारित होती है। हम कैसे भूल सकते हैं कि न केवल पुणे मेंबल्कि पूरे देश में पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और दिवाली के दौरान स्कूलों में जागरूकता अभियानों के कारण वायु और ध्वनि प्रदूषण कम हुआ था।  ठीक इसी वजह से जंगल बेल्स ने वन्यजीव संरक्षण में शिक्षकों को भी शामिल करने का फैसला किया क्योंकि किसी न किसी को शुरुआत तो करनी ही होगीहै नसौभाग्य से मुझे इस वेबिनार को सुनने का अवसर मिला और इसने मुझमें कई नए विचार आये जो वन्यजीवों के लिए आशा प्रदान करनेवाले हैं।  इस पहल का मूल उद्देश्य इन विचारों को उन लोगों के हाथों में पहुंचाना था जो उन्हें हजारों युवाओं के साथ साझा करेंगे और उन्हें उनके साथ लागू करेंगेजिसका कई गुना प्रभाव होगाजो कि वन्यजीवों के लिए समय की जरूरत है अगर हम उन्हें बचाना चाहते हैं। 

यह भी एक अच्छी बात थी कि इस वेबिनार में तीनों शिक्षक अलग-अलग प्रकार के स्कूलों से थे क्योंकि हम भी चाहते हैं कि पूरा समुदाय वन्यजीव संरक्षण में शामिल हो। उनमें से श्रीमती भावना मैडम सिंबॉयसिसकिवले में जूनियर कॉलेज की प्रधानाचार्य हैंश्रीमती विनीता मिलेनियम स्कूलकोथरुड से हैं और श्रीमती एंटोनेट सबसे पुराने माने जाने वाले एक कॉन्वेंट में से सेंट जोसेफ की प्रधानाचार्य हैं,  सबसे अच्छी बात यह है कि इन तीनों संस्थानों का परिसर पेड़ों और हरियाली से भरा हुआ है।

इसके अलावाश्रीमती भावना चंद्रपुर की रहने वाली हैंजहां ताडोबा टाइगर प्रोजेक्ट स्थित है। इसलिए किसी तरह वे शहरी वन्य जीवों के संपर्क में आ गए हैं। यहां मैं आपको बताना चाहूंगा कि वन्यजीव संरक्षण और इस उद्देश्य के लिए प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत जिम्मेदारी से अवगत कराने में सबसे बड़ी समस्या यह है कि अधिकांश छात्र और वयस्क वास्तव में कभी भी वन्यजीवों के संपर्क में नहीं आए हैं। इसलिए उनके लिए यह समझना मुख्य रूप से कठिन है कि वन्य जीवन क्या है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक अच्छी शिक्षा की परिभाषा यह है कि जिसके वजह से हमें अच्छी ग्रेड मिलती हैऔर फिर इस ग्रेड का उपयोग हमें अच्छा पैसा कमाने में होता है। इसलिए वन्यजीव शिक्षा की इस परिभाषा में फिट नहीं बैठतेकम से कम मौजूदा स्थिति में तो नहीं। छात्रों में वन्य जीवन के विचार को विकसित करते समय शिक्षकों के सामने यह मुख्य समस्या है।

तीनों शिक्षिकाओंने अपने विचार प्रस्तुत किये और विद्यार्थियों को वन्य जीवों के प्रति जागरूक करने के लिए क्या प्रयास किए जा रहे इसके के बारे में बताया इनमें आस-पास के जंगली क्षेत्रों के लिए लघु क्षेत्र यात्राएंसाथ-साथ प्रकृति से संबंधित परियोजनाछात्रों के लिए वन्यजीव विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान आयोजित करना और संस्थान के परिसर में स्वदेशी पेड़ लगाना शामिल हैं। फिर भी उन्होंने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों या पहलों को ज्यादा से ज्यादा छात्रों के साथ-साथ उनके माता-पिता तक बढ़ाया जाना चाहिए। इस पर सभी की सहमति भी बनी। इसके लिए ये शिक्षक जंगल बेल्स से निर्देश लेने को तैयार थे और साथ ही वन्य जीवन से जुड़े गैर सरकारी संगठनों को भी सहयोग करते थे क्योंकि यह एक साथ मिलकर लक्ष्य हासिल आसान होगा यह एक महत्वपूर्ण बिंदु था। कई व्यावसायिक रूप से सफल कंपनियों का वन्यजीव के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण होने  के बावजूदशिक्षकों द्वारा वन्यजीव संरक्षण के प्रति दिखाई गई तैयारी बहुत महत्वपूर्ण हैऐसा कुछ मैंने व्यक्तिगत रूप से बहुत अनुभव किया है। किसी भी सेलिब्रिटी या भीड़-खींचने वाली घटना को प्रायोजित करते समय ज्यादातर व्यवसायी बहुत खुश होकर खुले दिल से खर्चे करते हैं। लेकिन जब वन्य जीवन से संबंधित धन खर्च करने की बात आती हैतो उनके पास इसे खर्च न करने के सैकड़ों कारण होते हैं या उसे वे सीधे टालते हैं।  मुझे लगता है कि यह वन्यजीव संरक्षणवादियों की विफलता हैक्योंकि हम (मैं जानबूझकर खुद को इस श्रेणी में सोच रहा हूं)लोगों को यह समझाने में विफल रहे हैं कि वन्यजीव महत्वपूर्ण है और संरक्षण के साथ साथ पैसा कमाया जा सकता हैऔर इस पर ध्यान देना गलत नहीं है। यहीं पर यह शिक्षण संस्थान बदलाव ला सकते हैंक्योंकि अगर वन्यजीव पाठ्यक्रम का हिस्सा बन जाते हैं और अच्छे अंक लाने में शामिल किया जाता हैंतो यह छात्रों के साथ रहेगा। जब वे अपने व्यवसाय में बहुत पैसा कमाते हैंतो अंततः उसमें से कुछ पैसा वन्यजीव संरक्षण के लिये आ सकता हैवन्यजीवों के लिए कुछ समय देना ठीक है और इस कारण सेइन तीनों शिक्षकों ने इस बात पर सहमति जताई कि शिक्षा के हर स्तर पर वन्यजीवों को पाठ्यक्रम में शामिल किया चाहिए। चाहे प्राथमिक शिक्षा होमाध्यमिक शिक्षा हो या जूनियर कॉलेजशाखा या बैच का कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। उसके लिए हमें सबसे पहले शिक्षकों को प्रशिक्षित करना होगा और उन्हें समझाना होगा कि वन्य जीव क्या हैजिसकी चर्चा वेबिनार में की गई।

इस संदर्भ में जंगल बेल्स जैसे संगठन और शिक्षण संस्थान मिलकर वन्यजीव संरक्षण के लिए काम कर सकते हैं।

वर्तमान में वन्यजीवों की तीन श्रेणियां हैंएक शहरी वन्यजीवदूसरा ग्रामीण वन्यजीव और तीसरा वन या प्रत्यक्ष वन्यजीव। प्रत्येक शिक्षक को इन तीन वन्य जीवन का अनुभव करना चाहिए और फिर इस अनुभव को प्रत्येक छात्र तक पहचाना चाहिए। शहरी वन्य जीवन का तात्पर्य शहरों या कस्बों में या उसके आसपास पेड़ों और जानवरों (पक्षियों) की जैव विविधता से हैउदाहरण के लिए सेंट जोसेफ स्कूल के बगल की चट्टानी पहाड़ी। साथ ही सिम्बायोसिसकिवाले और मिलेनियम स्कूल ने किया घना वृक्षारोपण आने वाले कल का शहरी वन्यजीवन हैं। पुणे-पिंपरी चिंचवड नगर निगम की सीमा के भीतर कई स्थान हैंजिनका दौरा किया जाना चाहिए ताकि हम समझ सकें कि हम अपने आंगन/परिसर में क्या संरक्षित करना चाहते हैं। फिर ग्रामीण वन्य जीवन का अर्थ है गांवों और कस्बों के आसपास की जैव विविधता उदा- पुणे के बाहरी इलाके में दक्षिण-पूर्व में घास के मैदान या मुलशी (पश्चिमी घाट) और देवराया और पेड़ और झाड़ियाँ और कृषि भूमि भी शामिल हैं। इन वन्य जीवन आवासों (अर्थात् उन्हें होने वाले खतरों) के बारे में तथ्यों को जानने के लिए एक दिवसीय क्षेत्र यात्राएं या रात भर ठहरने का आयोजन किया जा सकता है। अंतिम बिंदु जंगल या वास्तविक वन्य जीवन है जिसे आम आदमी टाइगर प्रोजेक्ट या जंगलों के रूप में जानता है। जहां आप बड़े जानवरों को देख सकते हैं क्योंकि यह कहना आसान है कि बाघ को बचाओ या किसी वाहन में सुरक्षित रूप से उसकी तस्वीरें लो। लेकिन बाघों और उनके कठिन जीवन के करीब रहने वालों का क्याजब तक आप उन्हें नहीं समझेंगेआप उनका संरक्षण या सुरक्षा कैसे कर सकते हैं! ऐसा करने का एक प्रभावी तरीका यह है कि जंगल के पास के स्कूलों (जैसे ताडोबामेलघाट) के छात्रों और पुणे के स्कूलों के छात्रों का आदान-प्रदान करना है। मुझे पता है कि यह कल्पना से थोडा ज्यादा है। लेकिन इसके बारे में अगर सोचेंहम विदेशों में छात्रों को उनकी संस्कृति के बारे में जानने के लिए आदान-प्रदान कर सकते हैंतो अपने स्वयं के जंगलों को समझने के लिए इसी तरह का प्रयोग क्यों नहीं करतेहै नाआपको बस इसे ठीक से प्लान करना हैऔर हां उनके माता-पिता को विश्वास में लीजियेवे कभी-कभी अपने बच्चों के साथ भी आ सकते हैं। अगर सही तरीके से और सही लोगों के सहयोग से किया जाए तो यह निश्चित रूप से करने लायक है। जरूरी नहीं कि यह साल भर चलने वाला कार्यक्रम होइसे गर्मी या सर्दी की छुट्टियों में किया जा सकता है। उद्देश्य यह होना चाहिए कि शहरी छात्रों को वास्तविक जंगल में रहने की कठिनाइयों और चुनौतियों को समझा जाए और फिर भी उन्हें वन्य जीवन के प्रति प्रेम का एहसास कराया जाए।                                                    

शिक्षा और वन्य जीवन के संयोजन का यह तरीका और कई अन्य मुद्दों पर चर्चा की गई। व्यक्तिगत स्तर परवेबिनार बहुत ही सकारात्मक और आशापूर्ण चर्चा के साथ समाप्त हुआ। साथ मिलकर काम करने के लिए इस तरह की और गतिविधियां आयोजित करने का निर्णय लिया गया। मुझे लगता है कि इसी में ही वन्यजीवन का हरा और उज्ज्वल भविष्य है!

 संजय देशपांडेहेमांगी वर्तक आरती कर्वे अनुज खरे,

 जंगल बेल्स व संजीवनी ग्रुप .

 ईमेल आयडी - smd156812@gmail.com








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